Tuesday 8 April 2014

स्पन्दन







मेरे अंदर का उखड़ापन,और तुम्हारा सम्मोहन,
मिल जाते हैं जब यह दोनों,लग जाती है एक लगन। 

मेरे मन कि दीवारों को, अंदर से तुमने तोड़ दिया,
मेरा मन ही मेरा दुश्मन, तुमने अपनी ओर मोड़ लिया।
मेरे अंदर का यह अनकहापन,और तुम्हारा प्रेम निवेदन,
मिल जाते है जब यह दोनों, लग जाती है एक लगन। 

मेरा मन फिसला जाता है, न जाने क्या चाहता है,
तुम्हारे दर्द में मरना शायद, इंतज़ार में जीना चाहता है,
मेरे अंदर का अनछुआपन, और तुम्हारा स्पन्दन ,
मिल जाते है जब यह दोनों, लग जाती है एक लगन। 

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